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घोड़ाखाल सैनिक स्कूल देश का सर्वश्रेष्ठ विद्यालयो में एक,

 

नैनीताल के पास स्थित सैनिक स्कूल घोड़ाखाल की स्थापना 21 मार्च 1966 को रामपुर के नवाब की सुंदर एस्टेट पर हुई थी. (Sainik School Ghorakhal)

‘घोड़ाखाल’ नाम का सम्बन्ध 1857 के प्रथम स्वतंत्रा संग्राम की घटना से जुड़ा है. अवध के क्रांतिकारियों से बचने के लिए एक ब्रिटिश जनरल इस क्षेत्र में भटक गया था और पास के छोटे तालाब से पानी पीने के दौरान उसका घोड़ा मर गया, इसलिए इस जगह का नाम घोड़ाखाल पड़ा.

 

स्थापना के बाद से जनवरी 2020 तक सैनिक स्कूल घोड़ाखाल के 700 कैडेट एनडीए, आईएनए, टीईएस में शामिल हो चुके हैं. इस दौरान बड़ी संख्या में पूर्व छात्र भी सीधे आईएमए, ओटीए, वायु सेना अकादमी, नौसेना अकादमी, एएफएमसी, तटरक्षक बल और मर्चेंट नेवी में शामिल हुए हैं. कई अन्य छात्र आईएएस, आईपीएस, आईआईटी, बैंकिंग सेवाओं आदि में शामिल हुए, इनमें से अधिकांश वर्तमान में अपने संस्थानों के प्रतिष्ठित पदों पर हैं. 2000 के बाद से 8 बार एनडीए में सबसे बड़ी संख्या में कैडेट भेजने के लिए सैनिक स्कूल घोड़ाखाल को ‘रक्षा मंत्री ट्रॉफी’ से सम्मानित किया गया है.

1870 में ब्रिटिश शासकों द्वारा घोड़ाखाल एस्टेट जनरल व्हीलर को भेंट कर दी गई. 1921 में रामपुर के तत्कालीन नवाब, अलीजाह अमीरुल उमराह नवाब सर सैयद मोहम्मद हामिद अली खान बहादुर ने इस एस्टेट को खरीदा लिया. स्वतंत्र भारत में राजा-रजवाड़ों और नवाबों के प्रिवी पर्स उन्मूलन के बाद, उत्तर प्रदेश राज्य सरकार ने मार्च 1964 में रामपुर के नवाब से यह संपत्ति खरीदी और बाद में 21 मार्च 1966 को इस जगह पर देश के बेहतरीन स्कूलों में से एक सैनिक स्कूल, घोड़ाखाल की स्थापना की गयी. सैनिक स्कूल घोड़ाखाल 500 एकड़ में फैला हुआ है.

1961 में तब भारत के रक्षा मंत्री वी.के. कृष्ण मेनन ने सैनिक स्कूल की एक श्रृंखला की परिकल्पना की. इस स्कूल का मुख्य उद्देश्य भारतीय सेना के लिए काबिल अफसर तैयार करना था. इसके साथ ही सैनिक स्कूलों की इस श्रृंखला का मकसद भारतीय सेना के अधिकारियों के बीच वर्गीय व क्षेत्रीय असंतुलन को ठीक करना भी था. नतीजे के तौर पर आज 30 से ज्यादा सैनिक स्कूल 1 ‘राष्ट्रीय इंडियन मिलिट्री कॉलेज’ और 5 ‘राष्ट्रीय सैन्य स्कूल’ के साथ मिलकर भारतीय नौसेना अकादमी (आईएनए) और राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के लिए 30 प्रतिशत सैन्य अधिकारी तैयार करने का काम करते हैं.

 

इन सैनिक स्कूलों का सञ्चालन सैनिक स्कूल सोसायटी द्वारा किया जाता है. सैनिक स्कूल सोसायटी रक्षा मंत्रालय के अधीन एक संगठन है. सैनिक स्कूल सोसायटी का मुख्य कार्यकारी निकाय रक्षा मंत्री की अध्यक्षता में कार्यरत एक बोर्ड ऑफ गवर्नर्स होता है. स्कूल के स्थानीय प्रशासन की देखभाल एक स्थानीय प्रशासन बोर्ड द्वारा की जाती है, जिसके अध्यक्ष संबंधित कमांड के जनरल ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ होते हैं जहां सैनिक स्कूल स्थित होता है.

सैनिक स्कूलों की स्थापना की प्रेरणा रॉयल इंडियन मिलिट्री कॉलेज (आरआईएमएस) और रॉयल इंडियन मिलिट्री स्कूल (जिसे अब राष्ट्रीय सैन्य स्कूल या आरएमएस कहा जाता है) से मिली, जिन्होंने भारत को कई सेना प्रमुख दिए हैं.

1 आरआईएमसी और 5 आरएमएस की स्थापना प्रथम विश्व युद्ध के बाद सरकार द्वारा भविष्य के सैन्य अधिकारियों को पाश्चात्य शैली की शिक्षा प्रदान करके भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक सेना का भारतीयकरण करने के लिए की गई थी. आरआईएमसी की स्थापना 1922 में हुई थी. पहला आरएमएस यानि चैल मिलिट्री स्कूल भी 1922 में स्थापित किया गया. 1930 में अजमेर मिलिट्री स्कूल, 1945 में बेलगाम मिलिट्री स्कूल, 1946 में बैंगलोर मिलिट्री स्कूल और 1962 में धौलपुर मिलिट्री स्कूल.

1961 में सैनिक स्कूल सोसायटी के तहत पहला सैनिक स्कूल आया. इसके अलावा प्राइवेट सैन्य स्कूल भी हैं, जिनकी सबसे अधिक संख्या महाराष्ट्र में है. इनमें भोंसाला मिलिट्री स्कूल सबसे पुराना निजी सैन्य स्कूल है, जिसकी स्थापना 1937 में हुई.

हालांकि सैनिक स्कूल, लखनऊ, 1960 में स्थापित पहला सैनिक स्कूल था. लेकिन यह ‘सैनिक स्कूल सोसायटी’ के तहत नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश सैनिक स्कूल सोसायटी के तहत स्थापित किया गया.

सैनिक स्कूल आम भारतीय नागरिकों के पब्लिक स्कूल हैं जहां योग्य छात्रों को उनकी कमजोर आय या सामाजिक पृष्ठभूमि के बावजूद उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा दी जाती है. यहां अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति के छात्रों के अलावा भारतीय सेना के सेवारत और सेवानिवृत्त सैन्यकर्मियों के आश्रितों के लिए भी आरक्षण का प्रावधान है.

सैनिक स्कूलों का उद्देश्य छात्रों को देश की रक्षा सेवाओं में अधिकारियों के रूप में नेतृत्व करने के लिए तैयार करना है. स्कूल अखिल भारतीय सैनिक स्कूल प्रवेश परीक्षा के माध्यम से होनहार छात्रों का चयन करते.

सैनिक स्कूल भावी कैडेटों को खेल, शिक्षा और अन्य पाठ्येतर गतिविधियों के जरिये कौशल को विकसित करने की कोशिश करते हैं. सैनिक स्कूलों में बुनियादी ढांचे में रनिंग ट्रैक, क्रॉस-कंट्री ट्रैक, इनडोर गेम्स, परेड ग्राउंड, बॉक्सिंग रिंग, फायरिंग रेंज, कैनोइंग क्लब, घुड़सवारी क्लब, पर्वतारोहण क्लब, ट्रेकिंग और हाइकिंग क्लब, बाधा कोर्स, फुटबॉल, हॉकी और क्रिकेट के मैदान, वॉलीबॉल और बास्केटबॉल कोर्ट शामिल होते हैं. ये छात्र एनसीसी का भी हिस्सा बनते हैं. 12 वीं कक्षा पूरी करने वाले छात्र के पास आमतौर पर एनसीसी बी प्रमाणपत्र होता है. (Sainik School Ghorakhal)

साभार काफल टी

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