Wednesday, March 22, 2023
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इथेनॉल ब्लेडिंग : क्या बदल जाएगी देश की तस्वीर

अनिरुद्ध गौड़
विश्व स्तर पर जलवायु में एकाएक परिवर्तनों से ग्लोबल वार्मिंंग की वैश्विक समस्या विकराल रूप ले चुकी है।
वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रखने के लिए ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती के उपायों की महती जरूरत है। संयुक्त राष्ट्र के कॉप 26 और कॉप 27 वैश्विक सम्मेलनों में तमाम देशों ने संकल्प लेकर कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने का बीड़ा उठाया है। भारत का भी संकल्प है कि 2070 तक कार्बन उत्सर्जन को शुद्ध शून्य करने और 2030 के अंत तक भारत कार्बन उत्सर्जन में एक बिलियन टन की कमी लाएगा।

परिवहन क्षेत्र में कार्बन उत्सर्जन कम करने की दिशा में भारत ने 2013-14 में पेट्रोल में 1.53 प्रतिशत इथेनॉल मिशण्रकरने की पहल की थी। 2022 तक इसे 10.17 प्रतिशत तक बढ़ाकर बड़ी कामयाबी हासिल की। हाल में भारत की दो गतिविधियां साफ देखी जा सकती हैं।  पहली गतिविधि जनवरी, 2023 में ग्रेटर नोएडा में आयोजित ऑटो एक्सपो 2023 में देखी गई कि नवीकरणीय ऊर्जा पर आधारित वाहनों से ग्लोबल कार्बन उत्सर्जन को नियंत्रित करने के प्रति भारत संकल्पित है।

ऑटो एक्सपो में इलेक्ट्रिक (ईवी), इथेनॉल (फ्लेक्स फ्यूल), ग्रीन हाइड्रोजन चालित वाहनों में नई तकनीक और फ्यूल के बदले रूप की तस्वीर कुछ अलग ही रही। दूसरी गतिविधि फरवरी, 2023 में बंगलुरु  में संपन्न ’इंडिया एनर्जी वीक’ (आईईडब्ल्यू) में देखने को मिली। भारत ने हरित ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने की नई पहल के मद्देनजर वाहनों में 20 प्रतिशत इथेनॉल सम्मिशण्रके रोड मैप को हरी झंडी दिखाई है। इस क्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के 11 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के 15 शहरों में ई20 फ्यूल (इथेनॉल पेट्रोल सम्मिश्रण) के 84 आउटलेट्स खोलने का शुभारंभ किया। बताया गया है कि भारत का लक्ष्य 2025 के अंत तक पेट्रोल में इथेनॉल के 20 प्रतिशत सम्मिशण्रको पूर्ण रूप से हासिल करने का है।

देश में 2जी3जी इथेनॉल संयंत्र स्थापित कर इथेनॉल ब्लेंडिंग की प्रतिशतता को बढ़ाने का क्रम लगातार जारी रहेगा। इस बीच, हरित ऊर्जा स्रोतों मसलन ई20, ई85, फ्लेक्स फ्यूल, हाइड्रोजन, इलेक्ट्रिक आदि से चलने वाली गाडिय़ां पेश कर भारत ने ऊर्जा लक्ष्य को परिलक्षित करते हुए दुनिया को क्रांतिकारी दिशा दिखाई है। भारत की चीनी मिलों में ब्राजील के बाद गन्ने से सबसे अधिक चीनी बनती है। गन्ने के रस को फम्रेटेशन और डिस्टलाइजेशन करके इथेनॉल भी बनाया जाता है। जब पेट्रोल में इथेनॉल सम्मिश्रित करते हैं, तो इसे इथेनॉल ब्लेंडिंग कहते हैं। पेट्रोल में इथेनॉल की मात्रा 10 प्रतिशत तो यह ई10, 20 प्रतिशत तो यह ई20 या 85 प्रतिशत तो ई85 कहलाती है। अभी भारत का लक्ष्य ई20 है, जिसे 2025 के अंत तक प्राप्त करना है। भारत में इथेनॉल उत्पादन के समुचित संसाधन हैं, और इथेनॉल ब्लेंडिंग फ्यूल पर चलने वाले वाहन भी विकसित हो रहे हैं। ऐसे में इथेनॉल ब्लेंडिंग कार्यक्रम ऊर्जा क्षेत्र में भारत की आत्मनिर्भर बनाने के साथ गेमचेंजर के रूप में भूमिका निभाने की ओर अग्रसित कर सकती है।

पेट्रोलियम मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, भारत दुनिया में ऊर्जा और कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता, चौथा सबसे बड़ा रिफाइनर, पेट्रोलियम उत्पादों का छठा सबसे बड़ा आयातक, पेट्रोलियम उत्पादों का सातवां सबसे बड़ा निर्यातक है। वाहनों में ई10 और ई20 इथेनॉल ब्लेंडिंग कार्यक्रम से शुरू फ्यूल सिस्टम को गति देने के लिए सरकार बढ़ावा दे रही है। देश में गन्ने से चीनी के उत्पादन के अलावा गन्ने से सर्वाधिक इथेनॉल का भी उत्पादन हो रहा है। अभी चावल, मक्का, गेंहू, आलू, ज्वार, पराली, बांस आदि से इथेनॉल उत्पादन की चरणबद्ध कार्यान्वयन में सरकार पंजाब, ओडिशा, असम और कर्नाटक में पराली और बांस से पांच 2जी इथेनॉल बायोरिफायनरी लगा रही है।

इथेनॉल उत्पादन में अमेरिका विश्व में सबसे आगे है। ब्राजील, चीन, कनाडा, यूरोपियन यूनियन, जर्मनी, यूके, फ्रांस, इटली, स्वीडन, कोलंबिया और थाईलैंड आदि देश इथेनॉल का उत्पादन कर वाहनों में इथेनॉल ब्लेंडिंग फ्यूल का बखूबी इस्तेमाल कर रहे हैं। इथेनॉल ब्लेंडिंग फ्यूल के वाहनों में प्रयोग के मामले में ब्राजील सबसे आगे है।

पेट्रोल में अमूमन 27 प्रतिशत इथेनॉल ब्लेंडिंग करता है। मांग पूरी करने को इथेनॉल उत्पादन में गन्ना, चावल, मक्का, गेंहू, ज्वार, आलू आदि जैसे फूड ग्रेन का उपयोग होगा। ये सभी ज्यादा जल में पैदा होने वाली फसलें हैं। पराली और बांस से इथेनॉल बनाना तो ऊर्जा सुरक्षा के लक्ष्यों को प्राप्त करने के साथ प्रदूषण को कम करने के दोहरे उद्देश्य पूरा करता है, लेकिन फूड ग्रेन से इथेनॉल बनाने में सरकार को संतुलन रखना भी आवश्यक है। ध्यान रखा जाए कि कहीं ऐसा न हो कि फूड  ग्रेन से इथेनॉल बनाने के चलते देश में इनकी कीमत में इजाफा और आपूर्ति का संतुलन बिगड़ जाए।

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