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एक साथ चुनाव का बनता फॉर्मूला

अजीत द्विवेदी
एक देश, एक चुनाव की चर्चा धीरे धीरे जोर पकड़ रही है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली कमेटी की पहली बैठक में तय किया गया कि एक देश, एक चुनाव के सवाल पर राजनीतिक दलों की राय ली जाएगी और विधि आयोग को भी बुला कर इस बारे में बातचीत होगी। इसके बाद 22वें विधि आयोग की ओर से सूत्रों के हवाले खबर आई कि आयोग देश के सारे चुनाव एक साथ कराने के फॉर्मूले पर काम कर रहा है। यह भी बताया गया कि आयोग की रिपोर्ट जल्दी ही सरकार को सौंपी जाएगी, जिसमें एक साथ चुनाव कराने का फॉर्मूला होगा। बताया जा रहा है कि कुछ राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल घटा कर और कुछ का कार्यकाल बढ़ा कर एक साथ चुनाव कराने का फॉर्मूला तय होगा। यह भी बताया गया कि 2024 से 2029 के चुनावी चक्र के बीच इस फॉर्मूले को लागू किया जाएगा और 2029 के लोकसभा चुनाव के साथ सारे चुनाव कराए जा सकते हैं।

सवाल है कि क्या कोई ऐसा फॉर्मूला हो सकता है, जिससे 2029 में सारे चुनाव एक साथ कराए जाने के लिए सभी पार्टियां राजी हो जाएं? यह मुश्किल लगता है। अगर कुछ विधानसभाओं का कार्यकाल घटा कर और कुछ का बढ़ा कर 2029 में सारे चुनाव एक साथ कराने का फॉर्मूला बनता है तो उसमें कई बाधाएं आएंगी। जैसे पहली बाधा तो यह होगी कि 2025 से 2028 के बीच जिन राज्यों के चुनाव होने वाले हैं उनकी विधानसभाओं का क्या किया जाएगा? 2025 में फरवरी में दिल्ली और नवंबर में बिहार का चुनाव होना है। क्या इन दोनों राज्यों का चुनाव कराते समय यह कहा जाएगा कि दिल्ली में चुनाव चार साल के लिए और बिहार में सवा तीन साल के लिए हो रहा है? इसी तरह क्या 2026 के मई में तमिलनाडु, पुड्डुचेरी, केरल, पश्चिम बंगाल, असम आदि राज्यों में यह कहते हुए चुनाव कराए जाएंगे कि चुनाव तीन साल के लिए हो रहे हैं और फिर 2029 में लोकसभा के साथ इन राज्यों के चुनाव होंगे? ध्यान रहे इन राज्यों को बिना चुनाव कराए 2029 तक नहीं रखा जा सकता है। 2027 में भी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर, गोवा, हिमाचल प्रदेश, गुजरात आदि कई बड़े राज्यों में चुनाव होने हैं तो उनका क्या किया जाएगा? क्या बिना चुनाव कराए इन राज्यों को रखा जाएगा या इन राज्यों में डेढ़-दो साल के लिए चुनाव कराया जाएगा?

उससे पहले 2024 के लोकसभा चुनाव के साथ ओडिशा, आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम के चुनाव होते हैं और उसके बाद साल के अंत में बारी बारी से तीन राज्यों के चुनाव होते हैं। मजेदार बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अनेक बरसों से एक साथ चुनाव की बात करते रहे हैं लेकिन 2014 और फिर 2019 में भी महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड के चुनाव न लोकसभा के साथ हुए और न बाद में भी एक साथ हुए। तीनों चुनाव अलग अलग हुए। सो, क्या विधि आयोग ऐसा फॉर्मूला सुझाने जा रहा है कि अगले साल इन तीनों राज्यों की विधानसभाओं का चुनाव लोकसभा के साथ कराया जाए? अगर ऐसा होता है तो लोकसभा के साथ सात राज्यों के चुनाव हो जाएंगे।

पहले कहा जा रहा था कि इस साल नवंबर में जिन पांच राज्यों- राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम के चुनाव हैं उनको आगे बढ़ा दिया जाएगा और महाराष्ट्र, हरियाणा व झारखंड के चुनाव थोड़ा पहले करा लिए जाएंगे तो लोकसभा के साथ 12 राज्यों का चुनाव हो जाएगा। यानी लगभग आधे राज्यों का चुनाव एक साथ हो जाएगा और दूसरे चरण में बाकी आधे राज्यों का चुनाव कराया जा सकेगा। लेकिन अब इसकी संभावना बहुत कम हो गई है। एक देश, एक चुनाव पर विचार के लिए बनी रामनाथ कोविंद कमेटी की एक ही बैठक हुई है और अगली बैठक नौ अक्टूबर के बाद ही होगी क्योंकि रामनाथ कोविंद निजी यात्रा पर अमेरिका गए हैं। दूसरी ओर विधि आयोग की रिपोर्ट भी फाइनल नहीं है। इस बीच खुद भाजपा भी चुनावी राज्यों के लिए उम्मीदवारों की घोषणा कर रही है और चुनावी तैयारियां तेज हो गई हैं। सो, इतनी जल्दी कोई फॉर्मूला बनता नहीं दिख रहा है, जिससे इन राज्यों के चुनाव रोक दिए जाएं और अगले साल लोकसभा के साथ चुनाव कराया जाएं।

विधि आयोग का कहना है कि 2024 से 2029 के चुनावी चक्र के बीच ही विधानसभाओं का कार्यकाल घटाने और बढ़ाने का फॉर्मूला बनेगा और 2029 में एक साथ चुनाव करा लिया जाएगा। लेकिन यह बात व्यावहारिक नहीं लग रही है। क्योंकि अगर 2029 में एक साथ सारे चुनाव कराने का फैसला होता है तो चाहे जो भी फॉर्मूला बने वह चुनावी चक्र को बहुत बुरी तरह से प्रभावित करेगा। उसके लिए सभी पार्टियों को तैयार कराना मुश्किल होगा। दूसरे, एक बार सारे चुनाव एक साथ कराने के बाद यह सुनिश्चित करना होगा कि हर बार पांच साल पर ही चुनाव हो यानी लोकसभा या किसी भी विधानसभा के मध्यावधि चुनाव की नौबत न आए। इसके लिए लोकसभा और विधानसभाओं का पांच साल का कार्यकाल फिक्स करना होगा, जो बेहद अलोकतांत्रिक हो जाएगा और भारत जैसे बहुदलीय प्रणाली वाले देश में हॉर्स ट्रेडिंग, भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाला होगा। ब्रिटेन ने यह कानून बनाया था लेकिन 2017 में उसे यह कानून वापस लेना पड़ा था।

हां, अगर कोविंद कमेटी और विधि आयोग दोनों एक देश, दो चुनाव पर राजी होते हैं तो बड़ी आसानी से फॉर्मूला बन जाएगा। हालांकि इसके लिए भी कुछ विपक्षी पार्टियों को मनाना होगा और शुरुआत 2024 के लोकसभा चुनाव से ही करनी होगी। जैसे 2025 में दिल्ली और बिहार के चुनाव हैं। दोनों जगह गैर भाजपा दलों की सरकार है। इनको इस बात के लिए तैयार करना होगा कि इन राज्यों में 2024 के लोकसभा के साथ चुनाव हो जाए। यह काम सिर्फ कानून के जरिए नहीं होगा, बल्कि राजनीतिक बातचीत के जरिए होगा। अगर ऐसा हो जाता है तो 2024 में लोकसभा के साथ नौ राज्यों के चुनाव हो जाएंगे। उसके बाद 2025 में कोई चुनाव नहीं होगा। अगर ये दोनों राज्य तैयार नहीं होते हैं फिर 2025 में यह कहते हुए चुनाव कराना होगा कि विधानसभा का कार्यकाल पांच साल का नहीं होगा और 2029 के लोकसभा के साथ फिर इन राज्यों में चुनाव होंगे। इसके बाद 2026 के मई में होने वाले चुनावों का दायरा बढ़ाया जा सकता है। 2026 के मई में तमिलनाडु, पुड्डुचेरी, केरल, पश्चिम बंगाल और असम के चुनाव हैं। उसके आठ महीने बाद फरवरी-मार्च 2027 में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर और गोवा के चुनाव हैं, जबकि उसी साल के अंत में हिमाचल प्रदेश और गुजरात के चुनाव हैं। इन सात राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल कम करके मई 2026 में इनके चुनाव कराए जा सकते हैं। इस तरह मई 2026 में 13 राज्यों के चुनाव हो सकते हैं।

इसके बाद 2028 के शुरू में त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड के चुनाव हैं, मई में कर्नाटक का चुनाव है और साल के अंत में राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम के चुनाव हैं। अगर पहले से तैयारी होती है तो इन राज्यों के चुनाव टाल कर 2029 के लोकसभा चुनाव के साथ कराया जा सकता है। इससे 2029 के लोकसभा चुनाव के साथ 18 राज्यों के चुनाव कराए जा सकते हैं। इस तरह एक देश, दो चुनाव का चक्र बन जाएगा। पहले 2026 में 13 राज्य व केंद्र शासित प्रदेशों का चुनाव और फिर लोकसभा के साथ 18 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों का कराया जा सकता है। इसका फायदा यह होगा कि अगर इस बीच लोकसभा या किसी विधानसभा में मध्यावधि चुनाव की नौबत आती है तो वहां चुनाव को ज्यादा समय तक नहीं टालना पड़ेगा क्योंकि ढाई साल के अंतराल पर चुनाव का चक्र चलता रहेगा। अगर सारे चुनाव एक साथ कराने की जिद की गई तो कई मुश्किलें आ सकती हैं।

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