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राजधानी देहरादून आगमन पर आपके अगवानी के लिए हर समय तैयार है अपनी पहाड़ी पेहचान की प्रतीक खुगशाल जी की “रस्याण”

देहरादून : राजधानी पहुंचने पर आपके स्वागत के लिए हर समय तैयार है उत्तराखंड की माटी के लाल : “रस्याण” वाले राजेश खुगशाल जी पूरी टीम ।

आप अपने पहाड़ो के सभी व्यंजनों का स्वाद का लुफ़्त यहाँ उठा सकते हो , यहाँ पर पहुंचते ही सबसे पहले आपको पहाड़ो की कलाकृतियों का अनुभूति प्राप्त होगी ,

आज आपकी मुलाकात कराता हूं एक ऐसे शख्स से जिनके मन में उत्तराखंड की माटी, उत्तराखंड की बोली – भाषा, अपने रीति – रिवाज, खान – पान, रहन – सहन, संस्कृति के संरक्षण का जुनून है। एक ऐसे शख्स जो अपने सहकर्मी स्टाफ को मुंबई तक हवाई सफर कराकर ले गए। इसलिए कि मुंबई तक पहाड़ के व्यंजनों का स्वाद एवं खुशबू पहुंच सके। मुंबई, दिल्ली, अमृतसर सहित अनेकों शहरों में “गढ़ भोज” के नाम से उत्तराखंड के पारंपरिक व्यंजनों का प्रचार – प्रसार और पहचान दिलाने के लिए जिन्होंने हमेशा अपनी जेब से खर्च ही किया है। ऐसे उत्तराखंड की माटी के लाल ‘राजेश खुगशाल जी” से मिलकर बड़ी प्रसन्नता हुई।
कोटद्वार से देहरादून तक का सफर वाया दिल्ली, मुंबई बड़ा रोचक है। 3 वर्ष तक आपने सी•आर•पी•एफ में भी अपनी सेवा दी। आपका कैटरिंग का व्यवसाय है। आप इस समय 60 लोगों को रोजगार दे रहे हैं। यह स्वरोजगार के क्षेत्र में रुचि रखने वाले अन्य लोगों के लिए भी प्रेरणादायक सिद्ध होगा। आपके स्टाफ में पुरुषों के साथ – साथ महिलाएं भी कार्य करती हैं।
आपने उत्तराखंड की शान लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी नाइट, जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण नाइट, युवाओं के दिलों की धड़कन किशन महिपाल नाइट और कल्पना चौहान नाइट के अनेकों कार्यक्रमों में उत्तराखंड का पारंपरिक भोजन दर्शकों / श्रोताओं को प्रेम पूर्वक परोसा है।
आप नव प्रयोग धर्मी भी हैं। आज से 12 साल पहले आपने कोटद्वार में रहते रहते हुए अपने व्यापारिक प्रतिष्ठान का एक विज्ञापन उत्तराखंड के महान कलाकार रामरतन काला और विजेंद्र चौधरी जी के सहयोग से तैयार कराया। आप ने बताया कि उस समय उस विज्ञापन पर ₹10 हजार खर्च हुए थे लेकिन उस विज्ञापन की बदौलत आप ने बताया कि 25 लाख रुपए की कमाई हुई। अपनी संस्कृति और खान-पान के प्रति आपका जुनून ही था कि आपने वह 25 लाख रुपए की राशि देश के विभिन्न भागों में गढ़ भोज कार्यक्रमों के आयोजन में प्रसन्नता पूर्वक खर्च की।
गढ़वाल भ्रातृ मंडल मुंबई द्वारा भी आपको आदर पूर्वक आमंत्रित किया गया; जहां आपकी पूरी टीम ने प्रतिभाग किया और गढ़वाल के व्यंजनों का स्वाद व खुशबू मुंबई तक पहुंचाई। “कुआं वाला” देहरादून में मुख्य मार्ग पर आपने “खुगशाल जी की रस्याण” – “हमरी उत्तराखंडै पच्छ्याण” के नाम से अपना प्रतिष्ठान स्थापित किया है। जिसका उद्घाटन दीपावली के तुरंत बाद होने जा रहा है। यह प्रतिष्ठान उत्तराखंड की संस्कृति का जीवंत उदाहरण है। आपका लक्ष्य ऊंचा है आपकी थीम बहुत अच्छी है।
आपने बताया यहां पर पर्या में छांछ छोलती हुई महिलाएं भी दिखाई देंगी तो सिलबट्टे पर नमक पीसती महिलाएं अरसे बनाते हुए कारीगर दिखेंगे तो झंगोरे की खीर, गहत की भरी हुई रोटी, मंडुवे / मक्की की रोटी बनाती हुई महिलाएं और सबसे बड़ी बात कि पहाड़ी चूल्हे पर। पहाड़ी सिंगल चूल्हा, डबल चूल्हा और ट्रिपल चूल्हा भी होगा। रसोई मिट्टी से लीपकर तैयार की जाएगी। इसके अलावा आटा पीसने के लिए जंदरा, उलख्यारी के भी आपको दर्शन होंगे। और सबसे बड़ी बात यह है कि उत्तराखंडी व्यंजन परोसने वाले भी यहां की वेशभूषा में आपको दिखाई देंगे। टिहरी जनपद के “बागी मठियाण गांव” से एक सरोला जी भी इस प्रतिष्ठान के लिए आमंत्रित कर दिए गए हैं। जिनके हाथों से बना स्वादिष्ट भोजन आपको उपलब्ध होगा। आपने बताया कि मेरी इच्छा है कि कोटद्वार – हरिद्वार से चलकर राजधानी आने वाला व्यक्ति यह सोचकर घर से चले कि मैं नाश्ता इस प्रतिष्ठान में करूं। इसी प्रकार दिल्ली से चलने वाला व्यक्ति जो देहरादून आए उसका लक्ष्य यह होना चाहिए कि दोपहर का भोजन मैं यहां करूंगा। राजधानी देहरादून में उत्तराखंड की संस्कृति को दर्शाने वाला, खानपान को दर्शाने वाला, बोली – भाषा को दर्शाने वाला यह विशिष्ट प्रतिष्ठान सबके आकर्षण और चर्चा का केंद्र बन रहा है।
आपके साथ आपके सहयोगी दिनेश उनियाल जी भी युवा हैं और उर्जा से लवरेज हैं। कुल मिलाकर यह राम – लखन की जोड़ी वास्तव में उत्तराखंड को एक नई पहचान दिलाने वाली है। आओ! हम और आप सभी इस अपनी बोली, भाषा, संस्कृति, सभ्यता, खान-पान, रहन-सहन, का हिस्सा बनें। बस थोड़ा सा एक पखवाड़े का इंतजार करना है और फिर मिलते हैं कुआं वाला देहरादून के इस रेस्टोरेंट में। जहां उत्तराखंडी गीत – संगीत के बाद अब उत्तराखंड की रीत और प्रीत पर भी चर्चा होने वाली है।
शुभकामनाएं खुगशाल जी।

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