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जिस जी-20 का हल्ला है

अब यह बात अमेरिका की तरफ से लगभग आधिकारिक रूप से कह दी गई है कि अब वह जी-7 को ही एकमात्र प्रासंगिक मंच मानता है। जापान स्थित अमेरिकी राजदूत ने जी-7 शिखर सम्मेलन के समय यह कहा कि संयुक्त राष्ट्र और जी-20 एक निष्क्रिय मंच बन गए हैं।

भारत में जी-20 की मेजबानी मिलने का बड़ा शोर है। यह दीगर बात है कि ऐसे समूहों की मेजबानी उसके सदस्य हर देश को रोटेशन से मिलती है। मगर सत्ताधारी पार्टी के सूचना तंत्र ने इस मौके को भारत की बड़ी उपलब्धि के रूप में पेश कर रखा है। बहरहाल, जब साधारण-सी बात पर बहुत से लोगों ने गौर नहीं किया है, तो उन्हें इस बात की शायद ही कोई सूचना होगी कि दुनिया आखिर इस मंच को ही किस नजरिए से देख रही है। विश्लेषक तो पहले से बता रहे थे कि जी-20 एक अप्रसांगिक मंच हो चुका है। बहरहाल, अब यह बात अमेरिका की तरफ से लगभग आधिकारिक रूप से कह दी गई है। और यह बात कहते हुए कई विश्लेषण पश्चिम के प्रतिष्ठित प्रकाशनों में छपे हैँ। अमेरिका का रुख जापान में उसके राजदूत राह्म इमैनुएल ने उस समय स्पष्ट किया, जिस रोज इस देश के शहर हिरोशिमा में जी-7 का शिखर सम्मेलन शुरू हुआ था।

उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र और जी-20 एक निष्क्रिय मंच बन गए हैं। जापान की एक वेबसाइट को दिए इंटरव्यू में अमेरिकी राजदूत ने कहा- ‘जी-7 आज पहले के किसी मौके की तुलना में अधिक प्रासंगिक है, क्योंकि दुनिया किसी ऐसी अंतरराष्ट्रीय संस्था की तलाश में है, जो काम कर सकने में सक्षम हो।’ उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र अब वैसी प्रभावी संस्था नहीं रह गया है, जैसा पहले यह हुआ करता था। यूक्रेन पर हमले के बाद यह बात और जाहिर हो गई। जबकि इस वर्ष मार्च में नई दिल्ली में हुई जी-20 के विदेश मंत्रियों की बैठक में साझा बयान पर सहमति नहीं बन सकी।

ऐसे में वहां उसे सदस्य देशों के यूक्रेन युद्ध पर रुख के बारे में मेजबान देश यानी भारत की तरफ से तैयार सार-संक्षेप पर संतोष करना पड़ा। पश्चिम के भू-राजनीतिक विशेषज्ञों ने भी ऐसी राय जताई है। उनके मुताबिक जी-7 में ऐसे देश शामिल हैं, जिनकी भू-राजनीति से लेकर सुरक्षा और आर्थिक मसलों पर एक जैसी राय है। जबकि जी-20 में ऐसी बात नहीं है, नतीजतन उसकी बैठकों में कुछ हासिल नहीं हो रहा है।

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