भरोसा क्यों डोल रहा है?
अगर सबसे धनी लोगों को यह लगने लगे कि इस देश में अब कोई भविष्य नहीं है, तो इस बात को अति गंभीर माना जाएगा। यह आम अनुभव है कि बेहतर भविष्य नजर आता हो, तो कोई भी अपने देश से नाता नहीं तोडऩा चाहता।
जिस देश से उसके अपने नागरिकों का भरोसा डोलने लगे, उसके भविष्य के बारे में चिंतित होने की ठोस वजह रहती है। अगर गरीब लोग बेहतर अवसरों की तलाश में बाहर जा रहे हों, तो बात फिर भी समझ में आती है। लेकिन अगर धनी, बल्कि सबसे धनी लोगों को यह लगने लगे कि इस देश में अब कोई भविष्य नहीं है, तो इस बात को अति गंभीर माना जाएगा। यह आम समझ है कि अगर बेहतर भविष्य नजर आता हो, तो कोई भी अपने देश से नाता नहीं तोडऩा चाहता। पिछले साल आई एक रिपोर्ट में बताया गया था कि ज्यादा से ज्यादा संख्या में भारत के धनी लोग देश छोडऩे के इच्छुक हैं। लोगों को दूसरे देशों की नागरिकता और वीजा दिलाने वाली ब्रिटेन स्थित अंतरराष्ट्रीय कंपनी हेनली ऐंड पार्टनर्स यह बता चुकी है कि गोल्डन वीजा यानी निवेश के जरिए किसी देश की नागरिकता चाहने वालों में भारतीयों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। हेनली ग्लोबल सिटिजंस रिपोर्ट के मुताबिक नागरिकता नियमों के बारे में पूछताछ करने वालों में 2020 के मुकाबले 2021 में भारतीयों की संख्या 54 प्रतिशत बढ़ गई।
2020 में भी उससे पिछले साल के मुकाबले यह संख्या 63 प्रतिशत बढ़ी थी। इसी पृष्ठभूमि में जब सरकार ने नागरिकता छोडऩे वाले भारतीयों की संख्या संसद में बताई, तो यह प्रश्न फिर से चर्चित हुआ। सरकार की तरफ से बताया गया कि पिछले कुछ सालों में भारत की नागरिकता छोडऩे वाले लोगों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है। 2021 में 1.63 लाख और 2022 में 2.25 लाख लोगों ने नागरिकता छोड़ी। 2011 के बाद से 16 लाख से अधिक भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ दी है। पिछले तीन साल के दौरान पांच भारतीय नागरिकों ने यूएई की नागरिकता हासिल की है। संख्या पर एक नजर डालने से साफ होता है कि 2015 के बाद से नागरिकता छोडऩे वालों की संख्या में वृद्धि हुई है। सिर्फ 2020 में इसमें अचानक गिरावट आई, लेकिन उस वर्ष कोविड-19 महामारी के कारण दुनिया में आना-जाना ठहरा हुआ था। लॉकडाउन के बाद जैसे ही सीमाएं खुलीं, इस संख्या में फिर इजाफा होने लगा।